Ramjan: शुरू होने वाला है पाक महिना
By: Faiz Alam
लॉकडाउन के बीच शुरू हो रहे रमजान में इस बार रोजेदारों का अल्लाह सख्त इम्तिहान लेगा। हर रोजा मुस्लिमों को करीब 15 घंटे यानि 900 मिनट रखने होंगे। अगर 23 अप्रैल को चांद दिखा तो पहला रोजा 24 अप्रैल को होगा। अगर 24 को चांद दिखा तो 25 अप्रैल को पहला रोजा 15 घंटे 22 मिनट यानि कुल 922 मिनट रखना होगा। इस्लाम धर्म के सबसे पाक महीनों में शुमार रमजान (Ramzan) का महीना इसी हफ्ते शुरू होने वाला है. रमजान के पूरे महीने (29 या 30 दिन) तक मुस्लिम समुदाय के लोग रोजे रखते हैं, कुरान पढ़ते हैं. हर दिन की नमाज के अलावा रमजान में रात के वक्त एक विशेष नमाज भी पढ़ी जाती है, जिसे तरावीह कहते हैं. लोग अल्लाह से अपने गुनाहों की तौबा करते हैं. मुस्लिम समुदाय के लोग साल भर रमजान का बेसब्री से इंतजार करते हैं, क्योंकि ऐसी मान्यताएं हैं कि इस महीने अल्लाह अपने बंदों को बेशुमार रहमतों से नवाजता है और दोजख (जहान्नम) के दरवाजे बंद कर के जन्नत (स्वर्ग) के दरवाजे खोल देता है. इस बार रमजान का पाक महीना चांद दिखने पर 24 या 25 अप्रैल से शुरू होगा.
Ramjan 2020 |
मुस्लिम समुदाय के लोगों के लिए रमजान का महीना इसलिए भी जरूरी होता है क्योंकि ऐसी मान्यता है कि इस महीने की गई इबादत का सवाब बाकी महीनों के मुकाबले 70 गुना मिलता है. रमजान में रोजा नमाज के साथ कुरान पढ़ने की भी काफी फजीलत है,
रमजान के महीने का चांद दिखने के बाद से ही तरावीह (एक तरह की नमाज) पढ़ने का सिलसिला शुरू हो जाता है. इसी रात सूरज निकलने से पहले सुबह के समय सहरी खाकर मुस्लिम समुदाय के लोग रमजान का पहला रोजा रखकर अपनी इबादतों का सिलसिला शुरू कर देते हैं. रमजान में नमाज और रोजा रखने के साथ तरावीह पढ़ने की भी काफी फजीलत बताई गई है.
सहरी और इफ्तार क्या है और रमजान में इसकी क्या फजीलत है?
रमजान के महीने में सहरी और इफ्तार करने की भी बेहद फजीलत है. सहरी सुबह सूरज निकलने से पहले खाए गए खाने को कहते हैं. सहरी खाकर ही रोजा रखा जाता है. शाम में सूरज ढलने पर जब रोजा खोलते हैं उसे इफ्तार कहते हैं. कहते हैं इफ्तार के समय रोजेदार दिल से जो दुआ मागंते हैं, अल्लाह उनकी तमाम जायज दुआएं कुबूल करता है.आंख, कान और ज़बान का रोजा
रोजे रखने का मतलब सिर्फ खाने और पीने की चीजों से दूरी बनाना नहीं होता है. बल्कि रोजा आंख, ज़बान और कान का भी होता है. यानी रोजा रखने के बाद रोजेदार ना गलत बात कर सकता है और ना झूठ बोल सकता है और ना ही किसी की बुराई कर सकता है. इसी तरह गलत चीजों को देखने और सुनने से भी रोजा टूट जाता है. इसलिए कहा जाता है कि रोजा रखने पर इंसान हर गलत काम और बुराइयों से पाक हो जाता है.
ईद-उल-फितर
रमज़ान
का महीना खत्म होने के साथ ही ईद का त्यौहार मनाया जाता है। जिसमें लोग हर्ष और प्रेम जताने के लिए एक दूसरे से मिलते
हैं और बधाई देते है, वैसे तो दान-दक्षिणा जिसे जकात कहा जाता है रोज़े रखने के दौरान
भी दी जाती है लेकिन ईद के दिन नमाज से पहले गरीबों में फितरा बांटा जाता है जिस कारण
ईद को ईद-उल-फितर कहा जाता है।
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